बुधवार, 4 जुलाई 2012

भारत -- पाक युद्ध के शौर्य प्रतीक अपराजेय योद्धा ब्रिगेडियर उस्मान

अपने वीर सपूत को देश सदा रखेगा याद



आजमगढ़ के वीर सपूतो में एक नाम सदा लिया जाता रहेगा भारत पाकिस्तान के बीच हुए 1947 --48 के प्रथम युद्ध में भारत के महान योद्धा ब्रिगेडियर उस्मान की शौर्य गाथा सदियों तक आने वाली पीढ़िया याद रखेगी | शौर्य के प्रतीक महावीर चक्र से सबसे पहले नवाजे गये उस दुधर्ष सैनिक का जन्म 15 जुलाई 1912 को तत्कालीन जनपद आजमगढ़ के बीबीपुर गाँव में काजी मुहम्मद फारुक के घर हुआ था | उनके पिता बनारस में कोतवाल थे और उनकी शुरूआती पढ़ाई वही हरिश्चन्द्र स्कूल में हुई | शिक्षा पूरी होने के बाद उन्होंने सेना में भर्ती होने का निश्चय किया जबकि उनके पिता उन्हें पुलिस में भर्ती कराना चाहते थे | उनका चयन ब्रिटिश रायल अकादमी सन्धुषट में हो गया और एक फरवरी 1934 को प्रशीक्षण पूरा होने के बाद उनकी तैनाती भी 19 मार्च 1935 में 10 बलूच रेजिमेंट में हो गयी | उस्मान साहब को द्दितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजी हुकूमत द्वारा मलेशिया भेजा गया और कालान्तर में उन्हें बलूच रेजिमेंट से द्दितीय एयरबार्न पैरा टूपर में तैनात कर दिया गया | विभिन्न पदों पर जिम्मेदारी का कुशलता पूर्वक निर्वहन करते - करते कम उम्र में वे शीघ्र ब्रिगेडियर जैसे उच्च पद तक पहुच गये | देश के बटवारे के समय मोहम्मद जिन्ना और लियाकत अली ने पाकिस्तान सेना में उच्च पद देने का प्रस्ताव रखा लेकिन मातृभूमि के प्रति जिसका अटूट प्रेम हो वह कहा से इसे स्वीकार करता और उन्होंने विनम्रता से उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया | कालान्तर में उन्हें 77 पैरा टूपर ब्रिग्रेड अमृतसर का मुखिया बना दिया गया उस बीच आजादी के तीन माह भी चैन से बीते नही थे की कबाइलियो को आगे करके पाकिस्तान सेना ने जम्मू कश्मीर पर हमला बोल दिया उस समय तक कश्मीर का विलय अधर में लटका हुआ था जो हमले के दौरान हुआ | पाकिस्तान सेना कश्मीर के भू -- भाग पर कब्जा करते आगे बढती चली आ रही थी जिसे रोकने और खदेड़ने के लिए भारतीय सेना की टुकडिया जिस स्थिति में रही और जो साजो सामान उपलब्ध थे जम्मू -- कश्मीर की ओर कुछ करने लगी | सबसे बड़ी चुनौती पीर पजाल के दक्षिणी क्षेत्र की रक्षा करने का रहा | जिसमे नौसेरा , झागड़ , मीरपुर कोट्नी और पूंछ थे जहा पाकिस्तानी सेना ने कहर बरपा कर रखा था | वे ब्रिगेडियर उस्मान रहे जिनकी रणनीति के आगे बेख़ौफ़ बढ़ते आ रहे कबायली और पाकिस्तानी सेना को करारा झटका लगा और उनके मनसूबे धराशायी होने लगे | कबाइलियो के भेष में पाकिस्तानी सेना ने उस इलाके में जमकर कहर बरपाया | औरतो को नगा करके परेड करवाया तथा उनकी बोली भी लगाने लगे | उस बीच पैरासूट ब्रिग्रेड के मुखिया पराजपे के अस्पताल में भर्ती होने के बाद उनकी कमान उस्मान साहब को दी गयी | जम्मू क्षेत्र का नौसेरा सामरिक दृष्टि से विकत रहा | वहा लगभग 11 हजार पाकिस्तानी कबाइलियो ने ऊँची पहाडियों पर डेरा जमा रखा था | लेकिन शौर्य के पर्याय और दक्ष सैनिक अधिकारी उस्मान के आगे वे बौने पद गये |
भीषण संग्राम में 18 मार्च 1948 को नौसेरा इलाके को उन्होंने पाकिस्तानी सेना के कब्जे से मुक्त करा लिया | उस भीषण संग्राम में जहा पाकिस्तान को भारी धन -- जन की क्षति उठानी पड़ी वही भारत को बहुत मामूली और वह सब उस्मान साहब के कुशल रणनीति का परिणाम रहा और उस बड़ी सामरिक उपलब्धी के कारण ही उन्हें ''नौसेरा का शेर '' कहा जाने लगा | देश के लिए वह दिन दुर्भाग्यपूर्ण रहा जब 3 जुलाई 1948 को फ़ौज के डेरे में लगे उनके टेंट पर मशीनगन से चला एक गोला अचानक गिरा जिसकी जड़ में आने से उस महान बहादुर को वक्त से पहले हमसे छीन लिया | इस तरह भारत ने मात्र 36 वर्ष के एक महारथी को खो दिया | वे भारतीय सेना के सर्वोच्च पद के अधिकारी थे | बाद में उनका पाथिर्व शरीर दिल्ली लाया गया जहा को उनको अंतिम विदाई दी गयी | ऐसे महान सपूत को उनके जन्म शताब्दी पर शत - शत नमन
सुनील दत्ता
पत्रकार

3 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सार्थक आलेख !

रविकर ने कहा…

कबाइली का वेश दोगला, पाकिस्तानी सैनिक आये |
ग्यारह हजार थे, नौसेरा में, मार-काट आतंक मचाये |
कुशल नीति बन गई तुरत ही, उस्मान वीर झट-पट धाये |
मार भगाया दुश्मन को फिर, नौशेरा के शेर कहाए |

शिवम् मिश्रा ने कहा…

भारत के महान योद्धा ब्रिगेडियर उस्मान को शत शत नमन !

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