मंगलवार, 20 मार्च 2012

तबाही का मार्ग - गंगा एक्सप्रेस-वे



गंगा एक्सप्रेस वे पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की ड्रीम प्रोजेक्ट है। सरकार ने इस परियोजना का ठेका जे0पी0 समूह को दिया है। जिसका निर्माण पब्लिक प्राइवेट पार्टनर के आधार पर किया जाएगा। जिसमें पब्लिक की जमीन छीनकर प्राइवेट मुनाफा कaमाएगा, हमारी सरकार बीच में दलाली खाएगी।
यह बलिया से नोयडा तक 8 लाइन की सड़क होगी, जिसके किनारे चौड़ी हरित पट्टी होगी तथा व्यावसायिक औद्योगिक व शैक्षणिक संस्थान भी खोले जाएँगें। यह उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश मंे अब तक की सबसे बड़ी सड़क निर्माण परियोजना है। इसकी कुल लंबाई 1047 किमी0 होगी, जो जमीनी सतह से 8,10 मीटर ऊँची होगी। इसमें 900 कि0मी0 गंगा के किनारे से गुजरेगा और बाकी नरौरा से नोयडा तक का हिस्सा गंगा के किनारे नहीं होगा। इस 1047 किमी0 लम्बी सड़क में चार बड़े पुल, 8 रेलवे ओवर ब्रिज, 256 छोटे पुल, राष्ट्रीय राजमार्गों को क्रास करने वाले 12 फ्लाई ओवर, अन्य सड़कों को क्रास करने के लिए 140 फ्लाईओवर तथा 225 अन्डरपासेस बनाए जाएँगे। इसके बाद निर्बाध गति से दौड़ती कारें 120 किमी0 प्रति घंटे की रफ्तार से 10 घंटे में बलिया से नोएडा तक की दूरी तय करेंगी। सरकारी दावे के अनुसार इस सड़क परियोजना में लगभग 90,000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण होगा। जिसमें सड़क के लिए 30,000 एकड़, शैक्षिक संस्थानों के लिए 15,000 एकड़, व्यावसायिक, औद्योगिक, माल्स और आवासीय आदि के लिए लगभग 50,000 एकड़ भूमि की आवश्यकता होगी। इस परियोजना मंे उत्तर प्रदेश के 19 जिलों की 36 तहसीलें प्रभावित होंगी।
यह अभी एक एक्सप्रेस वे का मोटा-मोटा खाका है। ऐसे दर्जनों एक्सप्रेस वे की प्रदेश में बाढ़ आ गई हैं, जैसे यमुना एक्सप्रेस वे, हिंडन एक्सप्रेस वे, रामगंगा एक्सप्रेस वे, घाघरा एक्सप्रेस वे, सेज निर्माण आदि ऐसे उदाहरण हैं जिसमें किसानों की जमीन लूटने के लिए पूँजीपतियों ने खुला हमला बोल दिया है। सरकारों का यह तर्क है कि एक्सप्रेस वे के निर्माण से यात्रा सुगम व सस्ती होगी। किसानों की खुशहाली आएगी तथा बाढ़ से मुक्ति मिलेगी, विकास का दरवाजा खुल जाएगा। गरीबों को रोजगार हासिल होगा। इसके झूठ और लूट पर से परदा क्यों हटाना जरूरी है। बाढ़ से मुक्ति, बाढ़, किसानों के लिए अभिशाप नहीं बल्कि वरदान हैं। जिन क्षेत्रों में बाढ़ का पानी चला जाता है वहाँ बगैर खाद, पानी के दलहनी, तिलहनी फसलों सहित खाद्यान्न का भारी पैमाने पर उत्पादन होता है। नदियों के किनारे के दूसरी छोर के गाँवों के लिए तबाही को कई गुना बढ़ा देगा। क्योंकि सड़क निर्माण हो जाने के बाद पानी के फैलाव को सीमित कर देगा।
रोजगार सृजन का सवाल कितना झूठा है। जितनी भी सड़कें, राजमार्ग बन रहे हैं। उनमें ग्रामीणों को रोजगार नहीं मिलता है। सभी काम मशीनों से हो रहा हैं। मिट्टी खोदने, भरने, डालने, बिछाने, मसाला मिलाने, डामर गरम करने आदि सभी कामों के लिए मशीनें आ चुकी हैं। गाँव-गाँव में छोटे-मोटे रास्ते व पोखरे की खुदाई में भी मजदूरों से नहीं मशीनों से काम लिया जा रहा है। मनरेगा का रोजगार केवल कागज मंे लेन-देन हो रहा है। सरकार यदि सस्ता और सुगम रास्ते से निर्माण के लिए इतनी ज्यादा चिन्तित है तो डबल ही नहीं फोर लेन की रेल पटरी बिछा दे और सभी इंजनों को बिजली से दौड़ा दे। जिसमें भारी पैमाने पर धन-जन और जमीन की बचत हो जाएगी। एक्सप्रेस वे आदि से उजड़ने वाले लोगों को सरकार मुआवजा देगी, जिसमें घर के एक सदस्य को नौकरी और पैसा शामिल है। हमारी जमीन की कीमत जितनी सरकार एक बार देगी, लगभग उतने की हम हर फसल में पैदा कर लेते हैं; तो हमारे लिए तो जमीन ही फायदेमंद है मुआवजा नहीं। मुआवजा जो हम कुछ ही समय में खा-पीकर खत्म कर देंगे, जबकि जमीन रहेगी तो हम हर साल उतनी कमाई करते रहंेगे, रहा नौकरी का सवाल तो घर के एक सदस्य को तो नौकरी मिल जाएगी बाकी भाइयों के परिवारों का क्या होगा। खेती से तो चार-चार भाइयों का परिवार चल रहा है। हमें मुआवजा या नौकरी नहीं चाहिए हम खेती में ही खुश हैं। हम खेत को तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी अन्तरित कर सकते हैं।
किसानों की खुशहाली ये कैसे लाएँगें, इस बात की सहजता को समझा जा सकता है। कृषि लागत को महँगा करना व कृषि उत्पाद को सस्ता बनाए रखना, जिससे खेती घाटे का सौदा हो जाय। यह किसानों की जमीन लूटने का षड्यंत्र है। अभी हाल में फास्फेटिक खाद डी0ए0पी0, एन0पी0के0 आदि का दाम तीन महीने में चार बार बढ़ाकर दुगुना कर दिया गया है। यह 9 रुपये किग्रा0 से 20 रुपये प्रति किग्रा0 हो गई है। बीज और कीटनाशक दवाओं की स्थिति तो बहुुत ही भयावह है। 500 रुपये प्रति किग्रा0 डंकल धान बीज को उत्पादन के बाद 5 रुपये किग्रा0 भी कोई नहीं पूछ रहा है। सन् 2000 के बाद इस देश में सात लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। सरकारी आँकड़ों के अनुसार आप समझ सकते हैं कि सरकारी आँकड़ा कितना सही होता है। अभी कुछ दिनों पहले बी0बी0सी0 समाचार के अनुसार विदर्भ क्षेत्र के केवल 5 जिलों में तीन किसान प्रतिदिन कीटनाश दवाएँ पीकर आत्महत्या कर रहे हैं, जबकि गैर सरकारी सुचनाओं में यह संख्या दस से ऊपर है। वहाँ बुद्धिजीवी यह चर्चा कर रहे हैं कि सरकार इस सवाल पर रिसर्च करे कि कीटनाशक दवाओं से कितने कीट (कीड़े-मकोड़े) मरे और कितने किसान? किसानों के उत्पाद का वाजिब मूल्य नहीं मिल रहा है। पिछले वर्षों भारत सरकार ने 2100 रूपये प्रति Linkक्विंटल के भाव से गेहूँ दूसरे देशों से आयात किया, प्रति वर्ष 150 लाख टन, जबकि किसान 1500 रूपये प्रति क्विंटल का भाव माँग रहे थे सरकार ने नहीं दिया। सरकारों का कहना है कि गेहूँ-धान ,गन्ना के पीछे क्यों पड़े हो? फूलों की खेती करो, जेट्रोफा पैदा करो सरकार इसमें अनुदान देगी। पिछले 30 वर्षों में सरकारी नौकरों, अध्यापकांे के वेतन लगभग 100 गुना बढ़े हैं, जबकि कृषि उत्पाद का दाम केवल 20 गुना बढ़ा हैयह सब कुछ करके किसानों की दुर्दशा इसलिए बनाई जा रही है कि वे जमीन छीनते समय कम से कम प्रतिरोध करें। एक्सप्रेस वे का निर्माण इसलिए किया जा रहा है कि खेती पर कम्पनियों का जल्दी से जल्दी कब्जा हो और कम समय में दु्रत गति से सब्जियों, फलों, दूध और खाद्यान्न को देशी-विदेशी मण्डियों में पहुँचाकर भारी पैमाने पर मुनाफा लूट सकें। ठेका खेती शुरू की जा सके।
देश के पहाड़ों, जंगलों की खनिज सम्पदा की लूट देशी-विदेशी कम्पनियाँ खुलेआम कर रही हंै। वहाँ के मूल निवासी, आदिवासी विस्थापन दर विस्थापन करते हुए भूखों मरने को मजबूर हैं। अब मैदानी क्षेत्रों में खेती-किसानी पर कम्पनियों की नजर लग गई है। इसलिए यह किसानों की खुशहाली नहीं बल्कि बदहाली का मार्ग तैयार हो रहा है। इसका हर कीमत पर विरोध होना चाहिए।
-बलवन्त यादव

1 टिप्पणी:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

हमारी जमीन की कीमत जितनी सरकार एक बार देगी, लगभग उतने की हम हर फसल में पैदा कर लेते हैं-bilkul galat. aap kisan hote to aisa bilkul nahi likhte. ek ekad se kitna paida ho jata hai, kisi kisan se poochhiye.

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